बिरसा मुंडा को भारतीय समाज एक ऐसे नायक के तौर पर जानता है जिसने सीमित संसाधनों के बावजूद अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. उलगुलान की शुरुआत करने वाले ये वो शख्स थे जो जननायक के तौर पर इतिहास में दर्ज हो गए. बिरसा मुंडा से अंग्रेजी हुकूमत खार खाती थी. उन्हें गिरफ्त में लेकर 2 साल के लिए जेल में डाल दिया गया. उन्होंने अपनी अंतिम सांस साल 1900 में 9 जून की तारीख को ली.
- उन्हें साल 1900 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए गिरफ्तार किया गया और रहस्यमयी परिस्थितियों में रांची जेल के भीतर उनकी मौत हो गई
- उनकी जिंदगी और संघर्ष पर दो फिल्में भी बनीं, पहले गांधी (2008) और उलगुलान-एक क्रांति (2004)
- वे साल 1897 से 1900 के बीच अंग्रेजों के खिलाफ गोरिल्ला युद्ध लड़ते रहे. अंग्रेजों ने उन पर उस दौर में 500 रुपये की इनामी धनराशि रखी थी.
- उन्हें युवा छात्र के तौर पर जर्मन मिशन स्कूल में दाखिला दिया गया था और इसी वजह से उनका नाम डेविड पड़ा.
बिरसा मुंडा का जन्म 1875 के दशक में छोटा नागपुर में मुंडा परिवार में हुआ था. मुंडा एक जनजातीय समूह था जो छोटा नागपुर पठार में निवास करते थे. बिरसा मुंडा को 1900 में आदिवासी लोगों को भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 2 साल की सजा हो गई. इस बीच अंग्रेजों द्वारा दिए गए एक जहर के कारण 9 जून 1900 को ही उनकी मौत हो गई.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आदिवासियों के उत्थान के लिए आजीवन संघर्ष करने वाले क्रांतिकारी जननायक बिरसा मुण्डा को उनकी पुण्यतिथि 9 जून के अवसर पर श्रद्धांजलि अर्पित की है। मुख्यमंत्री ने मुण्डा को नमन करते हुए कहा कि मुण्डा आदिवासी चेतना के प्रणेताओं में से एक थे।
उन्होंने आदिवासियों को एकत्र कर जल, जंगल और जमीन के लिए आंदोलन किया। अकाल पीड़ितों की मदद की। उनके शौर्य और बलिदान की गाथा आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरित करती है। मुख्यमंत्री ने कहा कि बिरसा मुण्डा ने हमें सिखाया कि प्रेरणादायी नेतृत्व होने पर सामूहिक इच्छाशक्ति, हथियारों की शक्ति पर भी भारी पड़ती है। उनका अदम्य साहस हम सबके लिए प्रेरणा स्रोत हैं। भूपेश बघेल ने कहा कि आदिवासियों को उनका अधिकार और स्वाभिमान दिलाना ही बिरसा मुंडा को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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